A poem popular with revolutionaries in Iran
इरान में जारी प्रदर्शनों में युवा वर्ग में यह कविता बहुत लोकप्रिय है.
मैंने सोचा क्यों न हिंदी ब्लॉग जगत को भी इस महत्वपूर्ण घटना का साक्षी बनाया जाए.
सांस छूकर पता कर लेते हैं वो कि कहीं तुमने ये तो नहीं कहा "इश्क है तुमसे "
धड़कनें भी नाप लेते हैं
अजीब सा वक्त है ये प्यारे
सरे आम चौराहों पर कोड़े बरसायें जा रहे है इश्क पर
चलो छुपा ले उसे किसी तहखाने में
इस तिरछी अंधी गली में , जैसे ही धुंध छाती है ,
वो चिंगारी भड़कातें हैं फिर से अपने गीतों और कविताओं के होम से
हैरान न हो , ये अजीब वक्त है प्यारे
रात कि भर दोपहर में जो आदमी तुम्हारे कुण्डी खडकता है
छिनने आया है तुमसे वो तुम्हारी रोशनी
चलो छुपा ले उसे किसी तहखाने में
वो देखो , छुप कर खड़े है कसाई गलियों में
अपनी छुरियों और गंडासों के साथ
ये अजीब वक्त है प्यारे
वो कट फेंकते है होठों से खुशियाँ और अलग कर देते है नगमो को जबान से
चलो छुपा ले ख़ुशी को किसी तहखाने में
आस के पंछी गुलमोहर की आग में भूने जा रहे हैं
ये अजीब वक्त है प्यारे
जीत के नशे में चूर शैतान
निगल जाने को आतुर है हमारे विश्वास
चलो चल कर छुपा ले अपने भगवान को किसी तहखाने में
बुधवार, जुलाई 01, 2009
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