ऐ मेरे दिल चल कहीं और चल,
इस चमन में अब अपना गुजारा नहीं.
जब भी गुलशन को ख़ून की ज़रूरत पड़ी,
सबसे पहले हमारी ही गर्दन कटी,
फिर भी ये कहते हैं हमसे,
ये हमारा चमन है तुम्हारा नहीं
सत्य हो यदि, कल्प की भी कल्पना कर, धीर बाँधूँ,
किंतु कैसे व्यर्थ की आशा लिए, यह योग साधूँ!
जानता हूँ, अब न हम तुम मिल सकेंगे!
आज के बिछड़े न जाने कब मिलेंगे?
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें