बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका बासन चिमटा फुंकनी जैसी माँ
बान की सूनी खांट के ऊपर हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी थकी दुपहरी जैसी माँ
चिड़िया की चहकार में गूंजें राधा मोहन अली अली
मुर्गे की आवाज़ से उठती घर की कुण्डी जैसी माँ
बीबी बेटी बहिन पड़ोसन थोड़ी थोड़ी सी सबमें
दिन भर एक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी माँ
बाँट के अपना चेहरा माथा आँखें जाने कहाँ गयी
फटे पुराने एक एल्बम में चंचल लड़की जैसी माँ
सोमवार, मई 09, 2011
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