इक बगल में चाँद होगा, इक बगल में रोटियां
इक बगल में नींद होगी, इक बगल में लोरियां
हम चाँद पे रोटी की चादर डालकर सो जायेंगे
और नींद से कह देंगे लोरी कल सुनाने आयेंगे
इक बगल में खनखनाती सीपियाँ हो जाएँगी
इक बगल में कुछ रुलाती सिसकियाँ हो जाएँगी
हम सीपियों में भरके सारे तारे छूके आयेंगे
और सिसकियों को गुदगुदी कर कर के यूँ बहलाएँगे
अब न तेरी सिसकियों पे कोई रोने आएगा
गम न कर जो आएगा वो फिर कभी न जायेगा
याद रख पर कोई अनहोनी नहीं तू लाएगी
लाएगी तो फिर कहानी और कुछ हो जाएगी
होनी और अनहोनी की परवाह किसे है मेरी जां
हद से ज्यादा ये ही होगा की यहीं मर जायेंगे
हम मौत को सपना बता कर उठ खड़े होंगे यहीं
और होनी को ठेंगा दिखाकर खिलखिलाते जायेंगे
गुरुवार, जुलाई 05, 2012
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1 टिप्पणी:
में इंसान ...
में साये से सहमा बैठा हूँ
ज़ुल्मत में इजाफा करता हूँ
शायद ये मेरी कहानी है
हक बातों से में डरता हूँ
में इंसान हूँ, जिंदा मरता।।
हर ओर घटा सी छाती है
आँखों में नींद न आती है
जो इल्म हुआ है हासिल वो
उस इल्म को जाया करता हूँ
हक बातो से में डरता हूँ
में इन्सान हूँ जिंदा मरता हूँ।।
कब तक ये जलेगा घर मेरा
कब तक ये छटेगा अँधियारा
जो सपने है मेरी आँखों में
हर सपने को तोडे बैठा हूँ
हक बातो से में डरता हूँ
में इन्सान हूँ जिंदा मरता हूँ।।
में इंसान , में ही कातिल हूँ
में रहबर ,में ही बातिल हूँ
सोचेगा अब ये दानिश भी
क्यों इंसान को भगवान् कहता हूँ
हक बातो से में डरता हूँ
में इन्सान हूँ जिंदा मरता
piyush ji aapke lekh ko padhkar zindagi ke pehlo se ru ba ru hona aa gaya...
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