जब रक़्स दिखाया बादल ने ,
हर शक़्स को सिहरन सी है उठी
पतलून चढ़ाये सब कूदें
ना अक्स को देखें नालों में
फिर किसने शीशा सामने रख,
खुदकी खुदसे ही बात करा दी
किसने सारी धूप सुखा दी?
2)
शायर शायद अब बूझते हैं
क्या लफ्ज़ बिकाऊ होते है?
सब नज़्म,रुबायत , झोली में
और ओड़ के गजलें सोते हैं
बेकाम हो तब भी लिखता था,
फिर किसने ये बाज़ार लगा दी
किसने सारी धूप सुखा दी?
3)
प्यादों को कब किसने पूछा
सब खेल वजीरों ने ही खेला
राजा चुप था , बोलती रानी
हर कोई मगन बस अपने में
सब सही तो था , इस शहर में
फिर किसने शह और मात करा दी
किसने सारी धूप सुखा दी
हर शक़्स को सिहरन सी है उठी
पतलून चढ़ाये सब कूदें
ना अक्स को देखें नालों में
फिर किसने शीशा सामने रख,
खुदकी खुदसे ही बात करा दी
किसने सारी धूप सुखा दी?
2)
शायर शायद अब बूझते हैं
क्या लफ्ज़ बिकाऊ होते है?
सब नज़्म,रुबायत , झोली में
और ओड़ के गजलें सोते हैं
बेकाम हो तब भी लिखता था,
फिर किसने ये बाज़ार लगा दी
किसने सारी धूप सुखा दी?
3)
प्यादों को कब किसने पूछा
सब खेल वजीरों ने ही खेला
राजा चुप था , बोलती रानी
हर कोई मगन बस अपने में
सब सही तो था , इस शहर में
फिर किसने शह और मात करा दी
किसने सारी धूप सुखा दी
1 टिप्पणी:
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