बुधवार, अगस्त 18, 2010

मुश्किल है अपना मेल प्रिये

मेरे कॉलेज के एक बहुत ही हरफ़नमौला किस्म के सीनियर द्वारा रचित कविता

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम एम ए फ़र्स्ट डिवीजन हो, मैं हूँ मेट्रिक फेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम फ़ौजी अफ़सर की बेटी, मैं तो किसान का बेटा हूँ,
तुम रबड़ी खीर मलाई हो, मैं तो सत्तू सॅप्रेटा हूँ,
तुम एसी घर में रहती हो, मैं पेड़ के नीचे लेता हूँ,
तुम नई मारुति लगती हो, मैं स्कूटर लम्बरेता हूँ,
इस कदर अगर हम छुप-छुप कर आपस मे प्रेम बढ़ाएँगे,
तो एक रोज़ तेरे डॅडी अमरीश पुरी बन जाएँगे,
सब हड्डी पसली तोड़ मुझे भिजवा देंगे वो जेल प्रिए,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये

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