जिस खाक के ज़मीर मैं हो आतिश ए चिनार/ मुमकिन नहीं के सर्द हो वो खाक ए अरजुमंद.”
•''उनको देखे से जो आ जाती है चेहरे पे रौनक, वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।''
•
बोल, की लब आज़ाद हैं तेरे/बोल, ज़बान अब तक तेरी है... /बोल, की सच ज़िंदा है अब तक/बोल, जो कुछ कहना है कहले.
(Speak, your lips are free. Speak, it is your own tongue... Speak, because the truth is not dead yet. Speak, speak, whatever you must speak.)
Akbar Allahabadi-
o“पामाल हैं मगर हैं साबित क़दम वफ़ा में
ओ हम मिसले-ए-संग-ए-दर के इस आस्तान पर हैं’’
[Though crushed, we are firm in our loyalty
We are like a rock at the threshold of our country]
रहिए अब ऐसी जगह चलकर जहाँ कोई न हो
नोहाख्वा कोई न हो, और हमनवाँ कोई न हो।
•मैं रोया परदेस में, भीगा माँ का प्यार
दु:ख ने दु:ख से बात की, बिन चिठ्ठी बिन तार।
हमने माना है दकन में इन दिनों क़द्रे सुख़न...कौन जाए ज़ौक़ पर दिल्ली की गलियाँ छोड़कर.
•जो था न है, जो है न होगा, यही है एक हर्फे मुजिरमाना, करीबतर है नुमूद जिसकी उसी का है मुश्ताक ज़माना
•अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप। अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।
क़ौम के गम में डिनर खाते है हुकुम के साथ
रॅंज लीडर को बहुत है पर अपने ऐशों आराम के साथ
(Muslim leaders talk about the plight of Muslims during dinner with the British
They are not concerned about the sad state of Muslims, but with their own comforts.)
"कहाँ से लाएगा कासिद बयाँ मेरा ज़ुबाँ मेरी?
मज़ा था तब जो सुनते मेरे मुँह से दास्ताँ मेरी!"
निसार मैं तेरी गलियों के ऐ वतन कि जहाँ
चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले
जो कोई चाहने वाला तवाफ़ को निकले
नज़र चुरा के चले जिस्मों-जाँ बचा के चले
•चंदन कर्दम कलहे भेको मध्यस्थतापन्नः।
ब्रूते पंक निमग्नः कर्दम साम्यं च चंदन लभते।।
अर्थात चंदन और कीचड़ में विवाद हुआ और मेंढक को मध्यस्थ बनाया गया। चूँकि मेंढक कीचड़ में ही रहता है, वह चंदन का साथ भला कैसे दे सकता है?
•'हम सूरज के भरोसे मारे गए
और
सूरज
घड़ी के.
..........
और
सुबह है
कि हो ही नहीं पा रही है.' –वेणुगोपाल
‘हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदार पैदा.
ख़ुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वा की धार,
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार.
ये दाग दाग उजाला,
ये शब-गुज़ीदा सहर.
ये वो सहर तो नही के जिसके लिए,
चले थे यार के मिल जाएगी कहीं ना कहीं
पान सो पदारथ, सब जहान को सुधारत
गायन को बढ़ावत जामे चूना चौकसाई है
सुपारिन के साथ साथ,मसाला मिले भांत भांत
जामे कथे की रत्तीभर थोड़ी सी ललाई है
बैठें है सभा मांहि बात करे भांत भांत
थूकन जात बार बार जाने का बड़ाई है
कहें कवि 'किशोरदास' चतुरन की चतुराई साथ
पान में तमाखू किसी मूरख ने चलाई है
- पंडित किशोरदास 'khandwaavaasi'
पता : बमबई बाजार रोड, गांजा गोदाम के सामने , लाइब्ररी के
निकट वाला बिजली का खम्बा, जिसपे लिखा है - 'डोंगरे का बलामृत'
•मलाल उन्हें भी रहा, जो इश्क से मिल न पाये,
करते रहे इबादत अन जाने किस की...लोग कहते हैं आज कि वो मन्दिर में खुदा-खुदा करता रहता था
•एक बिहारी, सौ बीमारी; दो बिहारी, लड़ाई की तैय्यरी;
तीन बिहारी, ट्रेन हमारी; चार बिहारी, सरकार हमारी; पाँच
बिहारी, पंजाब ही हमारी;
चक दे फटटे भाय्या भागाओ, पंजाब बचाओ."
—a popular SMS joke in Punjab
•हतोबा प्रापयासी स्वर्गम, जितवबा भोक्श्यसे माहिं
तस्मादुटतिष्ठा कौन्तेय, युद्धया कृतनीश्चयः – गीता
बुधवार, अगस्त 18, 2010
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