बाँधो न नाव इस ठाँव, बन्धु ! / पूछेगा सारा गाँव, बन्धु !
यह घाट वही जिस पर हँसकर / वह कभी नहाती थी धँसकर
आँखें रह जातीं थीं फँसकर / कँपते थे दोनों पाँव, बन्धु !
वह हँसी बहुत कुछ कहती थी / फिर भी अपने में रहती थी
सबकी सुनती थी, सहती थी / देती थी सबको दाँव, बन्धु !
"कहाँ से लाएगा कासिद बयाँ मेरा ज़ुबाँ मेरी?
मज़ा था तब जो सुनते मेरे मुँह से दास्ताँ मेरी!"
सोलह डैने वाली चिड़िया / रंगारंग फूलों की गुड़िया
कहीं बैठकर लिखती होगी / चिट्ठी मेरे नाम
देव उठाती, सगुन मनाती / रात जलाती घी की बाती
दोनों हाथ दूर से झुककर / करती चाँद-प्रणाम
सुनो ! सुनो ! खेतों की रानी
तालों में घुटने भर पानी
लंबी रात खड़ी कुहरे में / खिड़की पल्ले थाम
चन्द्रमा उगा करवा चौथ का
तुमने भी अर्घ्य दिया होगा मेरे लिए
निर्जल उपवास किया होगा मेरे लिए
प्रियतम परदेस में न सो सका / भरी-भरी आँख ही सँजो सका
टूटे आस्तीन का बटन / या कुर्ते की खुले सिवन
कदम-कदम पर मौके, तुम्हें याद करने के
फूल नहीं बदले गुलदस्तों के / धूल मेजपोश पर जमी हुई
जहाँ-तहाँ पड़ी दस किताबों पर / घनी सौ उदासियाँ थमी हुईं
पोर-पोर टूटता बदन / कुछ कहने-सुनने का मन ... ...
अरसे से बदला रूमाल नहीं / चाभी क्या जाने रख दी कहाँ
दर्पण पर सिन्दूरी रेख नहीं / चीज नहीं मिलती रख दो जहाँ
चौके की धुआँती घुटन / सुग्गे की सुमिरनी रटन ... ...
किसे पड़ी, मछली-सी तडप जाय / गाल शेव करने में छिल गया
तुमने जो कलम एक रोपी थी / उसमें पहला गुलाब खिल गया
पत्र की प्रतीक्षा के क्षण / शहद की शराब की चुभन
कदम-कदम पर मौके / तुम्हें याद करने के
मैंने युग का सारा तमस पिया है, सच है
लेकिन तुमको प्यार किया है, यह भी सच है
घर पीछे तालाब / उगे हैं लाल कमल के ढेर
तुम आँखों में उग आयी हो / प्रात गंध की बेर
यह मौसम कितना उदास लगता है - तुम बिन
रेत से लिखो या जलधार से लिखो
मेरा है नाम, इसे प्यार से लिखो
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