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Arohan
रविवार, अप्रैल 01, 2012
फ़ासले
यह फ़ासले तेरी गलियों के हमसे तय ना हुए, हज़ार बार रुके हम हज़ार बार चले , ना जाने कौन सी मिट्टी वतन की मिट्टी थी, नज़र में धूल, जिगर में लिए गुबार चले - गुलज़ार
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