रविवार, अप्रैल 01, 2012

Ramnavami

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी। हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी। भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी।।

अर्थात् दीनों पर दया करने वाले, कौसल्याजी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए। मुनियों के मन को हरने वाले उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गई। नेत्रों को आनंद देने वाला मेघ के समान श्याम शरीर था, चारों भुजाओं में अपने (खास) आयुध (धारण किए हुए) थे, (दिव्य) आभूषण और वनमाला पहने थे, बड़े-बड़े नेत्र थे। इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा खर राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट हुए।

नौमी तिथि मधुमास पुनीता। । सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता।
मध्य दिवस अति शीत न घामा। पावन काल लोक विश्रामा।।

अर्थात् पवित्र चैत्र का महीना था, नवमी तिथि थी। शुक्ल पक्ष और भगवान का प्रिय अभिजित्‌ मुहूर्त था। दोपहर का समय था। न बहुत सर्दी थी, न धूप थी। वह पवित्र समय सब लोकों को शांति देने वाला था।

जो आनंद सिन्धु सुखरासी, सीकर तें त्रलोक सुधासी
सो सुखधाम राम अस नामा, अखिल लोक दायक विश्रामा।

अर्थात् जो आनंद के समुद्र और सुख के भंडार है, जिनके एक बूँद से तीनों लोक सुखी हो जाते हैं, उनका नाम राम है। वे सुख के धाम है और संपूर्ण लोकों को शांति देने वाले है। तुलसी दास कहते है 'राम' शब्द सुख-शांति के धाम का सूचक है। राम की प्राप्ति से ही सच्चे सुख और शांति की प्राप्ति होती है।


अमीर ख़ुसरो ने कहा है ...
शोखी-ए-हिन्दू ब बीं,कुदिन बबुर्द अज़ खास ओ नाम।
राम-ए-नाम हरगिज़ न शुद हर चंद गुफ्तम राम राम।।

अर्थात् हर आम और खास ये जान ले कि राम हिंद के शोख और शानदार शख्शियत हैं। राम मेरे मन में हैं। मै राम राम बोलूँगा जब भी बोलूँगा।

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