इक बगल में चाँद होगा, इक बगल में रोटियां
इक बगल में नींद होगी, इक बगल में लोरियां
हम चाँद पे रोटी की चादर डालकर सो जायेंगे
और नींद से कह देंगे लोरी कल सुनाने आयेंगे
इक बगल में खनखनाती सीपियाँ हो जाएँगी
इक बगल में कुछ रुलाती सिसकियाँ हो जाएँगी
हम सीपियों में भरके सारे तारे छूके आयेंगे
और सिसकियों को गुदगुदी कर कर के यूँ बहलाएँगे
अब न तेरी सिसकियों पे कोई रोने आएगा
गम न कर जो आएगा वो फिर कभी न जायेगा
याद रख पर कोई अनहोनी नहीं तू लाएगी
लाएगी तो फिर कहानी और कुछ हो जाएगी
होनी और अनहोनी की परवाह किसे है मेरी जां
हद से ज्यादा ये ही होगा की यहीं मर जायेंगे
हम मौत को सपना बता कर उठ खड़े होंगे यहीं
और होनी को ठेंगा दिखाकर खिलखिलाते जायेंगे
गुरुवार, जुलाई 05, 2012
रविवार, जुलाई 01, 2012
क्यों तू अच्छा लगता है
क्यों तू अच्छा लगता है
वक़्त मिला तो सोचेंगे
तुझ में क्या क्या देखा है
वक़्त मिला तो सोचेंगे
सारा शहर शानासाई का दावेदार तो है लेकिन
कौन हमारा अपना है
वक़्त मिला तो सोचेंगे
हमने उसको लिखा था
कुछ मिलने की तदबीर करो
उसने लिखकर भेजा है
वक़्त मिला तो सोचेंगे
मौसम, खुशबू, बादे-सबा, चाँद, शफक और तारों में
कौन तुमारे जैसा है
वक़्त मिला तो सोचेंगे
या तो अपने दिल की मानो
या फिर दुनिया वालों की
वक़्त मिला तो सोचेंगे
क्यों तू अच्छा लगता है
वक़्त मिला तो सोचेंगे
वक़्त मिला तो सोचेंगे
तुझ में क्या क्या देखा है
वक़्त मिला तो सोचेंगे
सारा शहर शानासाई का दावेदार तो है लेकिन
कौन हमारा अपना है
वक़्त मिला तो सोचेंगे
हमने उसको लिखा था
कुछ मिलने की तदबीर करो
उसने लिखकर भेजा है
वक़्त मिला तो सोचेंगे
मौसम, खुशबू, बादे-सबा, चाँद, शफक और तारों में
कौन तुमारे जैसा है
वक़्त मिला तो सोचेंगे
या तो अपने दिल की मानो
या फिर दुनिया वालों की
वक़्त मिला तो सोचेंगे
क्यों तू अच्छा लगता है
वक़्त मिला तो सोचेंगे
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