अजब अपना हाल होता अगर वस्ल-ए-यार होता,
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता,
ना मज़ा है दुश्मनी में ना है लुत्फ़ दोस्ती में,
कोई गैर गैर होता कोई यार यार होता,
ये मज़ा था दिल्लगी का के बराबर आग लगती,
ना तुम्हे क़रार होता ना हमें क़रार होता,
तेरे वादे पर सिटमगर अभी और सब्र करते,
अगर अपनी ज़िंदगी का हमें ऐतबार होता...
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