ये तो अचछा है कि सिर्फ़ सुनता है दिल,
अगर बोलता तो क़यामत होती।
जब हुई थी मोहब्बत तो लगा किसी अच्छे काम का असर है....!! खबर ना थी हमे कि गुनाहो की ऐसी भी सजा होती है...!!
ये कमबख्त हिचकियाँ थमती क्यूं नहीँ... किसी के जहन मेँ आकर यूं अटक गया हूँ मैँ..
तू भी मिलता है तो, मतलब से ही मिलता है..!! लग गए तुझको भी, सब रोग ज़माने वाले..!!
बिछड़ना है तो रूह से निकल जाओ,, रही बात दिल की तो ..... उसे हम देख लेंगे
तेरे नाम से अब मशहूर हूँ शहर में..... बस तू ही नहीं इक पहचानता मुझे।
क्या फरक कि मैं चला या तू चला है , बात है कि फासला कुछ कम हुआ है |
ये कुर्सी मेज़ कितने ही नये तुमने सजाये हैं... तुम्हें महफूज़ रखती है, वो छत कितनी पुरानी है.
सुना था आसमान भी कहीं पे झुकता है.... इसी उम्मीद में जमीन भी मेरी गई...
आजकल मुझसे वो बात करता नहीं ,, और अब क्या जमाना खराब आएगा
वो रूठे हे कुछ इस तरह की बगल में बैठ कर भी बात नही कर रहे हें..
रात भर आसमां में हम चाँद ढूढते रहे चाँद था कि चुपके से मिरे आँगन में उतर आया!!
दुनिया के सारे हक़ , सारे फैसले तेरे मुझे क्या चाहिए इक तेरे सिवा !!
सज़ा दें.. सिला दें.. बना दें.. मिटा दें ... मगर वो कोई .. फ़ैसला तो सुना दें
दिल के किस्से कहां नहीं होते हां ये सबसे बयां नहीं होते. - साक़िब लखनवी
जब हुई थी मोहब्बत तो लगा किसी अच्छे काम का असर है....!! खबर ना थी हमे कि गुनाहो की ऐसी भी सजा होती है...!!
ये कमबख्त हिचकियाँ थमती क्यूं नहीँ... किसी के जहन मेँ आकर यूं अटक गया हूँ मैँ..
तू भी मिलता है तो, मतलब से ही मिलता है..!! लग गए तुझको भी, सब रोग ज़माने वाले..!!
बिछड़ना है तो रूह से निकल जाओ,, रही बात दिल की तो ..... उसे हम देख लेंगे
तेरे नाम से अब मशहूर हूँ शहर में..... बस तू ही नहीं इक पहचानता मुझे।
क्या फरक कि मैं चला या तू चला है , बात है कि फासला कुछ कम हुआ है |
ये कुर्सी मेज़ कितने ही नये तुमने सजाये हैं... तुम्हें महफूज़ रखती है, वो छत कितनी पुरानी है.
सुना था आसमान भी कहीं पे झुकता है.... इसी उम्मीद में जमीन भी मेरी गई...
आजकल मुझसे वो बात करता नहीं ,, और अब क्या जमाना खराब आएगा
वो रूठे हे कुछ इस तरह की बगल में बैठ कर भी बात नही कर रहे हें..
रात भर आसमां में हम चाँद ढूढते रहे चाँद था कि चुपके से मिरे आँगन में उतर आया!!
दुनिया के सारे हक़ , सारे फैसले तेरे मुझे क्या चाहिए इक तेरे सिवा !!
सज़ा दें.. सिला दें.. बना दें.. मिटा दें ... मगर वो कोई .. फ़ैसला तो सुना दें
दिल के किस्से कहां नहीं होते हां ये सबसे बयां नहीं होते. - साक़िब लखनवी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें