जो घनीभूत पीड़ा थी
मस्तक में स्मृति-सी छायी
दुर्दिन में आँसू बनकर
जो आज बरसने आयी।
ये मेरे क्रंदन में बजती
क्या वीणा? - जो सुनते हो
धागों से इन आँसू के
निज करुणा-पट बुनते हो।
रो-रोकर, सिसक-सिसककर
कहता मैं करुण-कहानी
तुम सुमन नोचते सुनते
करते जानी अनजानी।
मस्तक में स्मृति-सी छायी
दुर्दिन में आँसू बनकर
जो आज बरसने आयी।
ये मेरे क्रंदन में बजती
क्या वीणा? - जो सुनते हो
धागों से इन आँसू के
निज करुणा-पट बुनते हो।
रो-रोकर, सिसक-सिसककर
कहता मैं करुण-कहानी
तुम सुमन नोचते सुनते
करते जानी अनजानी।
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