कितने भी तू कर ले सितम, हस हसके सहेंगे हम - 2
यह प्यार ना होगा कम सनम तेरी कसम
हो, सनम तेरी कसम, सनम तेरी कसम
कितने भी तू कर ले सितम, हस हसके सहेंगे हम
यह प्यार ना होगा कम सनम तेरी कसम
हो, सनम तेरी कसम, सनम तेरी कसम
(जितना तडपाएगी मुझको, उतना ही तडपेगी तू भी
जो आज है आरज़ू मेरी वो कल तेरी आरज़ू होगी) - 2
यह झूठ नहीं सच है सनम, सनम तेरी कसम
हो, सनम तेरी कसम, सनम तेरी कसम
नफ़रत से देखना पहले अंदाज़ प्यार का है यह
कुछ है आँखों का रिश्ता, गुस्सा इकरार का है यह
बड़ा प्यारा है तेरा ज़ुल्म, सनम तेरी कसम
हो, सनम तेरी कसम, सनम तेरी कसम
कितने भी तू कर ले सितम, हास हसके सहेंगे हम - 2
यह प्यार ना होगा कम सनम तेरी कसम
हो, सनम तेरी कसम, सनम तेरी कसम
first import of south to Hindi movies - Kamal hasan
a young reena roy
रविवार, फ़रवरी 26, 2012
मंगलवार, फ़रवरी 14, 2012
Love
बाँधो न नाव इस ठाँव, बन्धु ! / पूछेगा सारा गाँव, बन्धु !
यह घाट वही जिस पर हँसकर / वह कभी नहाती थी धँसकर
आँखें रह जातीं थीं फँसकर / कँपते थे दोनों पाँव, बन्धु !
वह हँसी बहुत कुछ कहती थी / फिर भी अपने में रहती थी
सबकी सुनती थी, सहती थी / देती थी सबको दाँव, बन्धु !
"कहाँ से लाएगा कासिद बयाँ मेरा ज़ुबाँ मेरी?
मज़ा था तब जो सुनते मेरे मुँह से दास्ताँ मेरी!"
सोलह डैने वाली चिड़िया / रंगारंग फूलों की गुड़िया
कहीं बैठकर लिखती होगी / चिट्ठी मेरे नाम
देव उठाती, सगुन मनाती / रात जलाती घी की बाती
दोनों हाथ दूर से झुककर / करती चाँद-प्रणाम
सुनो ! सुनो ! खेतों की रानी
तालों में घुटने भर पानी
लंबी रात खड़ी कुहरे में / खिड़की पल्ले थाम
चन्द्रमा उगा करवा चौथ का
तुमने भी अर्घ्य दिया होगा मेरे लिए
निर्जल उपवास किया होगा मेरे लिए
प्रियतम परदेस में न सो सका / भरी-भरी आँख ही सँजो सका
टूटे आस्तीन का बटन / या कुर्ते की खुले सिवन
कदम-कदम पर मौके, तुम्हें याद करने के
फूल नहीं बदले गुलदस्तों के / धूल मेजपोश पर जमी हुई
जहाँ-तहाँ पड़ी दस किताबों पर / घनी सौ उदासियाँ थमी हुईं
पोर-पोर टूटता बदन / कुछ कहने-सुनने का मन ... ...
अरसे से बदला रूमाल नहीं / चाभी क्या जाने रख दी कहाँ
दर्पण पर सिन्दूरी रेख नहीं / चीज नहीं मिलती रख दो जहाँ
चौके की धुआँती घुटन / सुग्गे की सुमिरनी रटन ... ...
किसे पड़ी, मछली-सी तडप जाय / गाल शेव करने में छिल गया
तुमने जो कलम एक रोपी थी / उसमें पहला गुलाब खिल गया
पत्र की प्रतीक्षा के क्षण / शहद की शराब की चुभन
कदम-कदम पर मौके / तुम्हें याद करने के
मैंने युग का सारा तमस पिया है, सच है
लेकिन तुमको प्यार किया है, यह भी सच है
घर पीछे तालाब / उगे हैं लाल कमल के ढेर
तुम आँखों में उग आयी हो / प्रात गंध की बेर
यह मौसम कितना उदास लगता है - तुम बिन
रेत से लिखो या जलधार से लिखो
मेरा है नाम, इसे प्यार से लिखो
यह घाट वही जिस पर हँसकर / वह कभी नहाती थी धँसकर
आँखें रह जातीं थीं फँसकर / कँपते थे दोनों पाँव, बन्धु !
वह हँसी बहुत कुछ कहती थी / फिर भी अपने में रहती थी
सबकी सुनती थी, सहती थी / देती थी सबको दाँव, बन्धु !
"कहाँ से लाएगा कासिद बयाँ मेरा ज़ुबाँ मेरी?
मज़ा था तब जो सुनते मेरे मुँह से दास्ताँ मेरी!"
सोलह डैने वाली चिड़िया / रंगारंग फूलों की गुड़िया
कहीं बैठकर लिखती होगी / चिट्ठी मेरे नाम
देव उठाती, सगुन मनाती / रात जलाती घी की बाती
दोनों हाथ दूर से झुककर / करती चाँद-प्रणाम
सुनो ! सुनो ! खेतों की रानी
तालों में घुटने भर पानी
लंबी रात खड़ी कुहरे में / खिड़की पल्ले थाम
चन्द्रमा उगा करवा चौथ का
तुमने भी अर्घ्य दिया होगा मेरे लिए
निर्जल उपवास किया होगा मेरे लिए
प्रियतम परदेस में न सो सका / भरी-भरी आँख ही सँजो सका
टूटे आस्तीन का बटन / या कुर्ते की खुले सिवन
कदम-कदम पर मौके, तुम्हें याद करने के
फूल नहीं बदले गुलदस्तों के / धूल मेजपोश पर जमी हुई
जहाँ-तहाँ पड़ी दस किताबों पर / घनी सौ उदासियाँ थमी हुईं
पोर-पोर टूटता बदन / कुछ कहने-सुनने का मन ... ...
अरसे से बदला रूमाल नहीं / चाभी क्या जाने रख दी कहाँ
दर्पण पर सिन्दूरी रेख नहीं / चीज नहीं मिलती रख दो जहाँ
चौके की धुआँती घुटन / सुग्गे की सुमिरनी रटन ... ...
किसे पड़ी, मछली-सी तडप जाय / गाल शेव करने में छिल गया
तुमने जो कलम एक रोपी थी / उसमें पहला गुलाब खिल गया
पत्र की प्रतीक्षा के क्षण / शहद की शराब की चुभन
कदम-कदम पर मौके / तुम्हें याद करने के
मैंने युग का सारा तमस पिया है, सच है
लेकिन तुमको प्यार किया है, यह भी सच है
घर पीछे तालाब / उगे हैं लाल कमल के ढेर
तुम आँखों में उग आयी हो / प्रात गंध की बेर
यह मौसम कितना उदास लगता है - तुम बिन
रेत से लिखो या जलधार से लिखो
मेरा है नाम, इसे प्यार से लिखो
शनिवार, फ़रवरी 04, 2012
Religion
Well Mao said religion is opium
and we have all read kabir's jibes on mullahs and pundits in our textbooks
i had read last lines of this poem of nida fazli at many places this is the first time got a chance to read it completely
"Bachcha bola dekhkar, masjid aalishaan
Allah tere ek ko, itna bada makaan?"
"Andar moorat par chadhe, ghee, poori, mishthan
Mandir ke baahar khada, Eeshwar maange daan"
"Ghar se masjid hai bahut door
Chalo yun kar lein
Kisi rote hue bachche ko
Hansaaya jaaye"
"बच्चा बोला देखकर, मस्जिद आलीशान
अल्लाह तेरे एक को, इतना बड़ा मकान?"
"अंदर मूरत पर चढ़े, घी, पूरी, मिष्ठान
मंदिर के बाहर खड़ा, ईश्वर माँगे दान"
"घर से मस्जिद है बहुत दूर
चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को
हंसाया जाए"
and we have all read kabir's jibes on mullahs and pundits in our textbooks
i had read last lines of this poem of nida fazli at many places this is the first time got a chance to read it completely
"Bachcha bola dekhkar, masjid aalishaan
Allah tere ek ko, itna bada makaan?"
"Andar moorat par chadhe, ghee, poori, mishthan
Mandir ke baahar khada, Eeshwar maange daan"
"Ghar se masjid hai bahut door
Chalo yun kar lein
Kisi rote hue bachche ko
Hansaaya jaaye"
"बच्चा बोला देखकर, मस्जिद आलीशान
अल्लाह तेरे एक को, इतना बड़ा मकान?"
"अंदर मूरत पर चढ़े, घी, पूरी, मिष्ठान
मंदिर के बाहर खड़ा, ईश्वर माँगे दान"
"घर से मस्जिद है बहुत दूर
चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को
हंसाया जाए"
Days of office
Not mine
but by someone named Kanupriya
एक को 'ग़बन' के सफहों के बीच बुक-मार्क बना के रख छोड़ा
कुछ को कॉफ़ी के संग निगल लिया
कईयों को अख़बार की तरह -
सरसरी निगाह से देख भर के किनारे रख दिया
कुछ दिन अब भी कनाट प्लेस के सर्कल्स के चक्कर ही लगा रहे हैं
दफ्तर के दिन, हम बस ऐसे बिता रहे हैं!
Office Days
One is now a bookmark for 'Ghaban'
Some were gulped down with a hurried cappuccino
Many were just glanced upon like a newspaper, and cast aside
Some days are still hanging around at Connaught Place
This is how I'm spending, my office days!
but by someone named Kanupriya
एक को 'ग़बन' के सफहों के बीच बुक-मार्क बना के रख छोड़ा
कुछ को कॉफ़ी के संग निगल लिया
कईयों को अख़बार की तरह -
सरसरी निगाह से देख भर के किनारे रख दिया
कुछ दिन अब भी कनाट प्लेस के सर्कल्स के चक्कर ही लगा रहे हैं
दफ्तर के दिन, हम बस ऐसे बिता रहे हैं!
Office Days
One is now a bookmark for 'Ghaban'
Some were gulped down with a hurried cappuccino
Many were just glanced upon like a newspaper, and cast aside
Some days are still hanging around at Connaught Place
This is how I'm spending, my office days!
शुक्रवार, फ़रवरी 03, 2012
Kajrare Kajrare (khol lined eyes)
A beautiful piece of poetry
specially reference to kali kamli or ballimaran
running metaphor of angdayi is also too great
http://gulzar101.blogspot.in/2012/02/kajraare-bunty-aur-babli.html#comment-form
and from my college
http://www.youtube.com/watch?v=ZVtpV3PHIHg
specially reference to kali kamli or ballimaran
running metaphor of angdayi is also too great
http://gulzar101.blogspot.in/2012/02/kajraare-bunty-aur-babli.html#comment-form
and from my college
http://www.youtube.com/watch?v=ZVtpV3PHIHg
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