शनिवार, फ़रवरी 25, 2006

सर्हद के पार

तो आखिर बहुत प्रायसोन के बाद हम भी हिन्दि मै ब्लोग लिख्ना सीख हि गये.गलित्यान तो अभी बहुत होगी पर आशा है की सभी अनुभवी जन धैर्यतापूर्वक इस नोउजावान कि बात भि सुनेन्गे.मै इस पोस्ट मे इधर उधर से एक्त्रीत कुछ छोटी मोटी कविताये आप लोगो के सथ बान्टना चाहून्गा.

१.कुछ तो इस शहर के लोग जालिम थैं
कुछ सानून मर्ना दा शौक भी था.
( पाकिस्तानी ग्रह मन्त्री अमैर्कन पत्रकार डेनिएल पर्ल की हत्या पर)

२. नदी क़िनारे धुआन उट्हे , मै जानू कुछ होऐ
ज़िस कारण मै जोगन बनी, वही ना जल्ता होऐ

( मश्हूर सूफी गाय्का आबिदा पर्वीन)

३. गैरो से कहा तुम्ने , गैरो से सुना तुम्न
े कभी हम्से कहा होता , कभी हम्से सुना होता
( इन्द्रकुमार गुजराल कश्मीरी अल्गाव्वादियोन से)


४. ना सही मुझ्से पर उस बुत मै वफा है तो सही
( अग्यात)
५. हवा भी खुश्गवार है गुलो पे भी निखार है
तरुन्नमे हज़ार है अभी तो मै जवान हू

६. तुम बिल्कुल हम जैसे निक्ले
अब तक कहा छुपे थे भाई
वो मूर्खता वो घामड्पन
जिस्मे हम्ने सदी गवायी
आखिर पहून्ची द्वार तुम्हार
े अरे बधाई , बहुत बधाई
{ पाकिस्तानी कवियत्री फ़ामिदा रियाज़ हिन्दुत्व के उन्पर)