सोमवार, मई 28, 2012

गंगा की धार

विस्तार है अपार, प्रजा दोनो पार, करे हाहाकार, निशब्द सदा, ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ? नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई, निर्लज्ज भाव से, बहती हो क्यूँ ? इतिहास की पुकार, करे हुंकार, ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी, समग्रगामी, बनाती नहीं हो क्यूँ ? अनपढ जन, अक्षरहीन, अनगिन जन, भाग्य विहीन नेत्र विहिन देख मौन मौन हो क्यूँ ? व्यक्ति रहे, व्यक्ति केन्द्रित, सकल समाज, व्यक्तित्व रहित, निष्प्राण समाज को तोड़ती न क्यूँ ? तेजस्विनी, क्यों न रही तुम निश्चय इतना नहीं प्राणों में प्रेरणा देतीं न क्यूँ उन्मद अवनी, कुरुक्षेत्र बनी, गंगे जननी नवभारत में भीष्म रूपी सुत समरजयी जनती नहीं हो क्यूँ ?

बुधवार, मई 23, 2012

हॅपी-सॅड

Eeh..Silent movie, thoda sound de na! Tu sad sad kyon hai, happy-sad kyon nahi? Hum sad kyun hote hain? Kyonki mann bhaari hai, heavy heavy! Mann kab heavy, heavy hota hai? Jab mann ko koi hurt karta hai! Mann ko kon itna hurt kar sakta hai? Jo mann ke very very close hota hai! Mann ke very very close kon hota hai? Jiske sang mann very very happy feel karta hai! Happy tha, isliye sad hai na, So be happy-sad not sad-sad!”

ऐ..साइलेंट मूवी, थोड़ा साउंड दे ना! तू सॅड सॅड क्यों है, हॅपी-सॅड क्यों नही? हम सॅड क्यूँ होते हैं? क्योंकि मंन भारी है, हेवी हेवी! मंन कब हेवी, हेवी होता है? जब मंन को कोई हर्ट करता है! मॅन को कोन इतना हर्ट कर सकता है? जो मॅन के वेरी वेरी क्लोज़ होता है! मॅन के वेरी वेरी क्लोज़ कोन होता है? जिसके संग मॅन वेरी वेरी हॅपी फील करता है! हॅपी था, इसलिए सॅड है ना, सो बे हॅपी-सॅड नोट सॅड-सॅड!”