रविवार, दिसंबर 30, 2012

On delhi rape

three poems which i came across and hit me hard

द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब गोविंद ना आयंगे

छोडो मेहँदी खडक संभालो
खुद ही अपना चीर बचा लो
द्यूत बिछाये बैठे शकुनि,
मस्तक सब बिक जायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे |

कब तक आस लगाओगी तुम, बिक़े हुए अखबारों से,
कैसी रक्षा मांग रही हो दुशासन दरबारों से
स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं
वे क्या लाज बचायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आयेंगे |

कल तक केवल अँधा राजा,अब गूंगा बहरा भी है
होठ सील दिए हैं जनता के, कानों पर पहरा भी है
तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे,
किसको क्या समझायेंगे?
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे |



लो ख़त्म हुई आपाधापी, लो बंद हुई मारामारी
लो जीत गई सत्ता फिर से, लो हार गई फिर लाचारी
कल सात समंदर पार कहीं इक आह उठी थी दर्द भरी
तब से जनता है ख़फ़ा-ख़फ़ा, तब से सत्ता है डरी-डरी
सोचो अंतिम पल में उसका कैसा व्यवहार रहा होगा
नयनों में पीर रही होगी, लब पर धिक्कार रहा होगा
जब सुबह हुई तो ये दीखा, बस ग़ैरत के परखच्चे हैं
इक ओर अकड़ता शासन है, इक ओर बिलखते बच्चे है
जनता के आँसू मांग रहे, पीड़ा को कम होने तो दो
तुम और नहीं कुछ दे सकते, हमको मिलकर रोने तो दो
सड़कों की नाकाबंदी करके, ढोंग रचाते फिरते हो
अभिमन्यु की हत्या करके, अब शोक जताते फिरते हो
जो शासक अपनी जनता की रक्षा को है तैयार नहीं
उसको शासक कहलाने का, रत्ती भर भी अधिकार नहीं


समय चलते मोमबत्तियां, जल कर बुझ जाएंगी..

श्रद्धा में डाले पुष्प, जलहीन मुरझा जाएंगे..

स्वर विरोध के और शांति के अपनी प्रबलता खो देंगे..

किंतु निर्भयता की जलाई अग्नि हमारे हृदय को प्रज्जवलित करेगी..

जलहीन मुरझाए पुष्पों को हमारी अश्रु धाराएं जीवित रखेंगी...

दग्ध कंठ से 'दामिनी' की 'अमानत' आत्मा विश्व भर में गूंजेगी..

स्वर मेरे तुम, दल कुचल कर पीस न पाओगे..

मैं भारत की मां बहन या या बेटी हूं,

आदर और सत्कार की मैं हकदार हूं..

भारत देश हमारी माता है,

मेरी छोड़ो अपनी माता की तो पहचान बनो !!