बुधवार, मार्च 21, 2012

Virginity test



Virginity Test
By Dania

You couldn't find the fear you sought in my eyes
So you spread my legs to see if you can find it in my vagina
What did you see in there?
Did you hear the screams of those you tortured?
Did you hear the souls of those you murdered?
Did you see my vagina stare right in your eyes and tell you to go fuck yourself?
Did you see my dream of a better life in its first trimester?
Did you see how resilient it is?
Did you see the sun of a brighter tomorrow shining from it?
I bet you couldn't look right into its bright light!
What did you see in there?
Did you feel it when my pussy curled its lips and spat in you face?
Pushing through the soft tissues and the discharge
Did you take a sneak peak at what's to come you way?
Did it scare you?
Did you see lady justice in there?
Did you see how my uterus took the shape of a balanced justice scale with truth on one side and fairness on the other?
Did you honestly think you were humiliating me?
Violating me?
Ohhh you are mistaken my pathetic dear!
There is nothing in the world I wanted more than you to see the rage in me
And there is no better place to see it than deep down where you were looking

तुम्हारा दिल या हमारा दिल है

ज़िहाले-मस्ती मक़ाम बे रंजिश
बेहाल हिजरा बेचारा दिल है
ज़िहाले-मस्ती मक़ाम बे रंजिश
बेहाल हिजरा बेचारा दिल है
सुनाई देती है जिसकी धड़कन... तुम्हारा दिल या हमारा दिल है
सुनाई देती है जिसकी धड़कन... तुम्हारा दिल या हमारा दिल है

वो आपके पहलू में ऐसे बैंठे
वो आपके पहलू में ऐसे बैंठे
की शामें रंगीन हो गयी है
की शामें रंगीन हो गयी है
की शामें रंगीन हो गयी है
ज़रा ज़रा सी खिली तबीयत ज़रा सी गमगीन हो गयी है
ज़रा ज़रा सी खिली तबीयत ज़रा सी गमगीन हो गयी है
ज़िहाले-मस्ती मक़ाम बे रंजिश
बेहाल हिजरा बेचारा दिल है
सुनाई देती है जिसकी धड़कन... तुम्हारा दिल या हमारा दिल है


कभी-कभी शाम ऐसे ढलती है
जैसे घूँघट उतर रहा है.उतर रहा
कभी-कभी शाम ऐसे ढलती है
जैसे घूँघट उतर रहा है.उतर रहा
तुम्हारे सीने से उठता धुआँ
हमारे सीने से गुज़र रहा है
तुम्हारे सीने से उठता धुआँ
हमारे सीने से गुज़र रहा है
ज़िहाले-मस्ती मक़ाम बे रंजिश
बेहाल हिजरा बेचारा दिल है
सुनाई देती है जिसकी धड़कन... तुम्हारा दिल या हमारा दिल है


यह शरम है या हया है,क्या है
नज़र उठाते ही झुक गयी है
नज़र उठाते ही झुक गयी है
तुम्हारी पलकों से गिर के शबमम
हमारी आँखों में रुक गयी है

तुम्हारी पलकों से गिर के शबमम
हमारी आँखों में रुक गयी है
ज़िहाले-मस्ती मक़ाम बे रंजिश
बेहाल हिजरा बेचारा दिल है
सुनाई देती है जिसकी धड़कन... तुम्हारा दिल या हमारा दिल है
सुनाई देती है जिसकी धड़कन... तुम्हारा दिल या हमारा दिल है

बुधवार, मार्च 07, 2012

सूर्य अष्टकम

आदि देव: नमस्तुभ्यम प्रसीद मम भास्कर । दिवाकर नमस्तुभ्यम प्रभाकर नमोअस्तु ते ॥
सप्त अश्व रथम आरूढम प्रचंडम कश्यप आत्मजम। श्वेतम पदमधरम देवम तम सूर्यम प्रणमामि अहम ॥ लोहितम रथम आरूढम सर्वलोकम पितामहम । महा पाप हरम देवम त्वम सूर्यम प्रणमामि अहम ॥
त्रैगुण्यम च महाशूरम ब्रह्मा विष्णु महेश्वरम । महा पाप हरम देवम त्वम सूर्यम प्रणमामि अहम ॥
बृंहितम तेज: पुंजम च वायुम आकाशम एव च । प्रभुम च सर्वलोकानाम तम सूर्यम प्रणमामि अहम ॥
बन्धूक पुष्प संकाशम हार कुण्डल भूषितम । एक-चक्र-धरम देवम तम सूर्यम प्रणमामि अहम ॥
तम सूर्यम जगत कर्तारम महा तेज: प्रदीपनम । महापाप हरम देवम तम सूर्यम प्रणमामि अहम ॥
फल स्रुथी
सूर्य-अष्टकम पठेत नित्यम ग्रह-पीडा प्रणाशनम । अपुत्र: लभते पुत्रम दरिद्र: धनवान भवेत ॥
आमिषम मधुपानम च य: करोति रवे: दिने । सप्त जन्म भवेत रोगी प्रतिजन्म दरिद्रता ॥
स्त्री तैल मधु मांसानि य: त्यजेत तु रवेर दिने । न व्याधि: शोक दारिद्रयम सूर्यलोकम गच्छति

मंगलवार, मार्च 06, 2012

वीर

वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा संभालो

चट्टानों की छाती से दूध निकालो

है रुकी जहाँ भी धार शिलाएं तोड़ो

पीयूष चन्द्रमाओं का पकड़ निचोड़ो

चढ़ तुंग शैल शिखरों पर सोम पियो रे

योगियों नहीं विजयी के सदृश जियो रे!





छोड़ो मत अपनी आन, सीस कट जाये

मत झुको अनय पर भले व्योम फट जाये

दो बार नहीं यमराज कण्ठ धरता है

मरता है जो एक ही बार मरता है

तुम स्वयं मृत्यु के मुख पर चरण धरो रे

जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे!




स्वातंत्र्य जाति की लगन व्यक्ति की धुन है

बाहरी वस्तु यह नहीं भीतरी गुण है

वीरत्व छोड़ पर का मत चरण गहो रे

जो पड़े आन खुद ही सब आग सहो रे!




जब कभी अहम पर नियति चोट देती है

कुछ चीज़ अहम से बड़ी जन्म लेती है

नर पर जब भी भीषण विपत्ति आती है

वह उसे और दुर्धुर्ष बना जाती है

चोटें खाकर बिफरो, कुछ अधिक तनो रे

धधको स्फुलिंग में बढ़ अंगार बनो रे!





उद्देश्य जन्म का नहीं कीर्ति या धन है

सुख नहीं धर्म भी नहीं, न तो दर्शन है

विज्ञान ज्ञान बल नहीं, न तो चिंतन है

जीवन का अंतिम ध्येय स्वयं जीवन है

सबसे स्वतंत्र रस जो भी अनघ पियेगा

पूरा जीवन केवल वह वीर जियेगा!