रविवार, सितंबर 26, 2010

उड़ान

छोटी छोटी छितराई यादें
बिछी हुईं हैं लम्हों की लौं में
नंगे पैर उनपर चलते चलते
इतने दूर आ गए है हम की अब
भूल गए हैं जूतें कहाँ उतारें थे
एड़ी कोमल थी जब आये थे
थोड़ी सी नाजुक है अभी भी और
नाजुक ही रहेगी
इन खट्टी मीठी यादों की शरारत
जब तक इन्हें गुदगुदाती रहे
सच
भूल गए हैं जूतें कहाँ उतारें थे
पर लगता है अब उनकी जरूरत नहीं

गुरुवार, सितंबर 23, 2010

Singhasan Khaali Karo Ke Janata Aaati Hai

A very good poem by Ramdhari Sing Dinkar.
Claim to fame : Used by Jay Prakash Narayan to exhort public at Ramleela Maidan in Delhi after which emergency was imposed

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। रामधारी सिंह "दिनकर"
सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

जनता?हां,मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाडे-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे सांप हो चुस रहे
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहनेवाली।

जनता?हां,लंबी - बडी जीभ की वही कसम,
"जनता,सचमुच ही, बडी वेदना सहती है।"
"सो ठीक,मगर,आखिर,इस पर जनमत क्या है?"
'है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है?"

मानो,जनता ही फूल जिसे अहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में;
अथवा कोई दूधमुंही जिसे बहलाने के
जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में।

लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह,समय में ताव कहां?
वह जिधर चाहती,काल उधर ही मुड़ता है।

अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अंधकार
बीता;गवाक्ष अंबर के दहके जाते हैं;
यह और नहीं कोई,जनता के स्वप्न अजय
चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं।

सब से विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तय करो
अभिषेक आज राजा का नहीं,प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।

आरती लिये तू किसे ढूंढता है मूरख,
मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।

फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

गुरुवार, सितंबर 09, 2010

केदार

this is the title of a very good song by a Pakistani rock band called 'noori'. Some interesting facts...

1. these guys are LUMS alums
2. their dad forms part of secular core of PPP has been jailed many times by army, is an exponent of indian classical music, running a music school with very indic name and has even invented an instrument called 'sagar vina'
3. their songs have indic motive e.g. this song which is another name of siva but chaps have got talent if India was undivided they would have been really famous..

आ आअ आअ आ
आ आअ आअ आ

छीन गया तेरे दिल का चैन अब
(अब) छाई केदार और भीगे तेरे नैना

लूट गयी तेरे मान की आस
गुम सुम उदास ये रोग तो है सहना

सपना सज़ा के, सब से पा के
डोर समंदर आग भड़के है

जग से ओझल, मंन के अंदर
हर किनारे ढ़ूनडते फिरे

वो हीरे मोती, हम को मिल जाएँ
कुछ तोड़ के आए, कुछ जोड़ के आए

हम आग के पांच्ची

अब दे चुके, वो इंतेहाँ
दिल पर सहे जिन के निशान

डोर, जल रहा मकान
निकला अभी, ये कारवाँ

धूम छा, धूम छा...(4)

ढल जाएगी ये गुम की रात
बरसेंगे मोती, फूल भी खिलेंगे

चीन गये जो थे चिराग
हम जूसतुजू मैं और भी ... गे

कल को जगाने, ये दीवाने
रोशनी (ले) कर चलेंगे

मन के अंदर, आसमान को
हर दिशा में ढूनडते फिरे वो!

(वो) हीरे मोटी, हम को मिल जाएँ
सब छोड़ के आए, सब तोड़ के आए

हम आग के पंछी!!

हम दे चुके, वो इंतेहाँ
दिल पर सहे, जिन के निशान

दूर, जल रहा मकान
निकला अभी, ये कारवाँ!

रुकता नहीं, ये कारवाँ!!

धूम तारा देने ना, देने ना, देने ना..(4)

... .... ... जहाँ
राख वो, नये मकान

जिन की है, तलाश वो
(धूल) गये, सब वो निशान

धीं ताना, देने नाना, देने ना...(10-14)

हमारे संग चले
जैसे जोगी बने

हमारे संग चले अब ये...!
हम छोड़ के आए, अब तोड़ के आए!

हम आग के पंचिी

हम दे चुके, वो इंतेहाँ
दिल पर सहे, जिन के निशान

डोर, जल रहा मकान
निकला अभी, ये कारवाँ!

रुकता नहीं, ये कारवाँ!!

हम दे चुका, वो इंतेहाँ
दिल पर सजे, जिन के निशान

दूउर, जल रहा मकान
निकला अभी, ये कारवाँ!

रुकता नहीं, ये कारवाँ!!

गुरुवार, सितंबर 02, 2010

Ek aur cheelu

तू चल पड़े जो सिंह सा तो क्या धरा है क्या गगन !
डोल मदमस्त सा तू कर चिंघाड़ हो मगन |

कायरों की भीड़ में पुकारता तू हंस के चल ..
ठूंठ के इस युग्म में बढा क़दम फिर मचल |

मृत्यु एक सोम है बस प्रश्न है कि कब पिए ?
ये नहीं कितना जिये ..ये है कि कैसे जिये ?

खुद को मारना बदल के उठ प्रचंड तू निकल ..
मर रहा है क्या असंख्य मौत पूछता है पल ?

हर कोई है जी रहा तो जीने में क्या बात है ?
कर सफल जो जन्म को तो वो सत्य प्रसाद है |

आज गर तू छुप गया तो कायर ही कहलायेगा ..
नरमुंड हैं पड़े तू भी एक बन जाएगा |

शस्त्र उठा युद्ध कर , परिणाम से तू अब न डर ...
विजयी हो बन अजर या शहीद हो तू बन अमर |

बुधवार, सितंबर 01, 2010

pakistan

http://www.hindisamay.com/kahani/Vibhajan%20ki%20kahaniyan/Hamara%20desh.htm



''ईरान में कौन रहता है?''

''ईरान में ईरानी कौम रहती है।''

''इंग्लिस्तान (इंग्लैंड) में कौन रहता है?''

''इंग्लिस्तान में अंग्रेज कौम रहती है।''

''फ्रांस में कौन रहता है?''

''फ्रांस में फ्रांसीसी कौम रहती है।''

''यह कौन-सा मुल्क है?''

''यह पाकिस्तान है!''

''इसमें पाकिस्तानी कौम रहती होगी?''

''नहीं! इसमें पाकिस्तानी कौम नहीं रहती।

इसमें सिन्धी कौम रहती है।

इसमें पंजाबी कौम रहती है।

इसमें बंगाली कौम रहती है।

इसमें यह कौम रहती है।

इसमें वह कौम रहती हैं।



''लेकिन पंजाबी तो हिन्दुस्तान में भी रहते हैं!

सिन्धी तो हिन्दुस्तान में भी रहते हैं!

बंगाली तो हिन्दुस्तान में भी रहते हैं!

फिर यह अलग देश क्यों बनाया था?''



''गलती हुई। मांफ कर दीजिए। अब कभी नहीं बनाएंगे।''

मंगलवार, अगस्त 31, 2010

हुस्न ए हक़ीक़ी – beauty of truth

ऐ हुस्ने हक़ीक़ी नूर ए अzअल

तेनू वाजिब ते इमकान कहूँ

तेनू खालिक ज़ात क़दीम कहूँ

तेनू हदीस खल्क़ जहाँ कहूँ

तेनू मुतलक़ महज़ वजूद कहूँ

तेनू ऑल्मिया अयान कहूँ

आवाह नफूस अक़ूल कहूँ

अश्बा इयान नेहान कहूँ

तेनू आइन हक़ीक़त माहीयत

तेनू अर्ज़ सिफ़त ते शान कहूँ

अनवाह कहूँ औज़ाह कहूँ

अतवार कहूँ औज़ान कहूँ

तेनू अर्श कहूँ अफलाक कहूँ

तेनू नाज़ नईम जानां कहूँ

तेनू तट जमाड नबाट कहूँ

हैवान कहूँ इंसान कहूँ

तेनू मस्जिद मंदिर दार कहूँ

तेनू पोथि ते क़ुरान कहूँ

तसबीह कहूँ ज़ुननार कहूँ

तेनू कुफ्र कहूँ ईमान कहूँ

तेनू बादल बरखा गाज कहूँ

तेनू बिजली ते बरान कहूँ

तेनू आब कहूँ कहूँ तेनू खाक कहूँ

तेनू बाद कहूँ नीरान कहूँ

तेनू दसरत लीचमान राम कहूँ

तेनू सीता जी ज़ानां कहूँ

बलदेव जसुदा नंद कहूँ

तेनू किशन कन्हैया कान कहूँ

तेनू बार्ह्मा बिशन गणेश कहूँ

महादेव कहूँ भगवान कहूँ

टेनी गीत ग्रंथ ते बेद कहूँ

तेनू ग्यान कहूँ अग्यान कहूँ

तेनू इब्राहिम हवा शीस कहूँ

तेनू नूह कहूँ तूफान कहूँ

तेनू इब्राहिम ख़लील कहूँ

तेनू मूसा बिन इमरान कहूँ

तेनू हर दिल दा दिलदार कहूँ

तेनू अहमद आलीशान कहूँ

तेनू शाहिद मल्क हिजाज़ कहूँ

तेनू बाइस कौन मकान कहूँ

तेनू नाज़ कहूँ अंदाज़ कहूँ

तेनू हूर पारी गील्मान कहूँ

तेनू नौक कहूँ तेनू त्तौक कहूँ

तेनू सुर्खी बीधा पान कहूँ

तेनू तबला ते तम्बूर कहूँ

तेनू ढोलक सुर्र ते तान कहूँ

तेनू हुस्न ते हार सिन्घार कहूँ

तेनू अश्वा घमzअ आन कहूँ

तेनू इश्क़ कहूँ तेनू इल्म कहूँ

तेनू वेहेम यक़ीन गुमान कहूँ

तेनू हुस्न कवि इद्राक कहूँ

तेनू ज़ौक कहूँ वज्दान कहूँ

तेनू साकार कहूँ सकरान कहूँ

तेनू हैरत ते हैरान कहूँ

तसलीम कहूँ तल्वीन कहूँ

टमकीन कहूँ इरफ़ान कहूँ

तेनू सुंबल सोसन सर्व कहूँ

तेनू नरगिस नाफ़रमान कहूँ

तेनू लाले दाघ ते बाघ कहूँ

गुलज़ार कहूँ बुस्तान कहूँ

तेनू खंजर तीर तूफांग कहूँ

तेनू बरछा बांक सनान कहूँ

तेनू तीर खिदंग कमान कहूँ

सूफार कहूँ पीकान कहूँ

बेरंग कहूँ बेमिसाल कहूँ

बेसूरत हर हर आन कहूँ

सुबह कहूँ क़ुदूस कहूँ

रहमान कहूँ सुभान कहूँ

कर तौबा टार्ट फरीद सदा

हर शह नू पर नुकसान कहूँ

तेनू पाक अलख बे ऐब कहूँ

तेनू हक़ बे नाम निशान कहूँ


हुस्न ए हक़ीक़ी – ब्यूटी ऑफ ट्रूथ

ख्वाजा गुलाम फरीद (1841 – 1901)

गुरुवार, अगस्त 19, 2010

In love with Zeb and Haniya

Artists like these and songs like this make you wish for a united india and are also a fitting reply to Taliban types (both are pashtun girls)


तेरी बातों ने दिल तोड़ा
तूने देखा और मुँह मोड़ा
बादल गरजा तोड़ा तोड़ा
तेरी बातों ने दिल तोड़ा
तूने देखा और मुँह मोड़ा
बादल गरजा थोड़ा थोड़ा
पानी बरसा
ये दिल तरसा
पर जब बीता तोड़ा अरसा
मैने रोना छोड़ दिया
गुज़रे थे जिन्से रास्ते
वोही अंजान आहें बन गईं
करनी थी जिससे बात उंकही
शायद चुप ही है सही
हलचल मैं है सागर सभी
साकीं है कुछ जुंबिश नही
यूँही है गुज़रे है ज़िंदगी
जीते कोई कोई
अब तो मैं बस एक भंवर हूँ
गर्दिश मैं हूँ रहगुज़ार हूँ
तूफान हूँ मैं तेरा दर हूँ
चल पड़ी है कल की खोई
हिम्मत है तो रोके कोई
मैने रोना छोड़ दिया
गिरते पत्तों ने
आस है भारी
कल ना आएगी कभी
बांधो ढारस अब
वक़्त है यही
कर गुज़रो सब कुछ अभी
गर्दिश मैं है मौसम सभी
ठहरी नही रोके नही
रस्म-ए-दुनिया है तो यही
पहुँचें कोई कोई
तेरी बातों ने दिल तोड़ा
तूने देखा और मुँह मोड़ा
बादल गरजा थोड़ा थोड़ा
पानी बरसा
ये दिल तरसा
पर जब बीता तोड़ा अरसा
मैने रोना छोड़ दिया
मैने रोना छोड़ दिया
मैने रोना रोना रोना रोना रोना छोड़ दिया

बुधवार, अगस्त 18, 2010

some collected quotes

जिस खाक के ज़मीर मैं हो आतिश ए चिनार/ मुमकिन नहीं के सर्द हो वो खाक ए अरजुमंद.”

•''उनको देखे से जो आ जाती है चेहरे पे रौनक, वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।''


बोल, की लब आज़ाद हैं तेरे/बोल, ज़बान अब तक तेरी है... /बोल, की सच ज़िंदा है अब तक/बोल, जो कुछ कहना है कहले.
(Speak, your lips are free. Speak, it is your own tongue... Speak, because the truth is not dead yet. Speak, speak, whatever you must speak.)



Akbar Allahabadi-
o“पामाल हैं मगर हैं साबित क़दम वफ़ा में
ओ हम मिसले-ए-संग-ए-दर के इस आस्तान पर हैं’’
[Though crushed, we are firm in our loyalty
We are like a rock at the threshold of our country]


रहिए अब ऐसी जगह चलकर जहाँ कोई न हो
नोहाख्वा कोई न हो, और हमनवाँ कोई न हो।


•मैं रोया परदेस में, भीगा माँ का प्यार
दु:ख ने दु:ख से बात की, बिन चिठ्ठी बिन तार।


हमने माना है दकन में इन दिनों क़द्रे सुख़न...कौन जाए ज़ौक़ पर दिल्ली की गलियाँ छोड़कर.


•जो था न है, जो है न होगा, यही है एक हर्फे मुजिरमाना, करीबतर है नुमूद जिसकी उसी का है मुश्ताक ज़माना

•अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप। अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।


क़ौम के गम में डिनर खाते है हुकुम के साथ
रॅंज लीडर को बहुत है पर अपने ऐशों आराम के साथ
(Muslim leaders talk about the plight of Muslims during dinner with the British
They are not concerned about the sad state of Muslims, but with their own comforts.)

"कहाँ से लाएगा कासिद बयाँ मेरा ज़ुबाँ मेरी?
मज़ा था तब जो सुनते मेरे मुँह से दास्ताँ मेरी!"


निसार मैं तेरी गलियों के ऐ वतन कि जहाँ
चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले
जो कोई चाहने वाला तवाफ़ को निकले
नज़र चुरा के चले जिस्मों-जाँ बचा के चले


•चंदन कर्दम कलहे भेको मध्यस्थतापन्नः।
ब्रूते पंक निमग्नः कर्दम साम्यं च चंदन लभते।।
अर्थात चंदन और कीचड़ में विवाद हुआ और मेंढक को मध्यस्थ बनाया गया। चूँकि मेंढक कीचड़ में ही रहता है, वह चंदन का साथ भला कैसे दे सकता है?


•'हम सूरज के भरोसे मारे गए
और
सूरज
घड़ी के.
..........
और
सुबह है
कि हो ही नहीं पा रही है.' –वेणुगोपाल



‘हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदार पैदा.


ख़ुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वा की धार,
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार.


ये दाग दाग उजाला,
ये शब-गुज़ीदा सहर.
ये वो सहर तो नही के जिसके लिए,
चले थे यार के मिल जाएगी कहीं ना कहीं



पान सो पदारथ, सब जहान को सुधारत
गायन को बढ़ावत जामे चूना चौकसाई है
सुपारिन के साथ साथ,मसाला मिले भांत भांत
जामे कथे की रत्तीभर थोड़ी सी ललाई है
बैठें है सभा मांहि बात करे भांत भांत
थूकन जात बार बार जाने का बड़ाई है
कहें कवि 'किशोरदास' चतुरन की चतुराई साथ
पान में तमाखू किसी मूरख ने चलाई है
- पंडित किशोरदास 'khandwaavaasi'

पता : बमबई बाजार रोड, गांजा गोदाम के सामने , लाइब्ररी के
निकट वाला बिजली का खम्बा, जिसपे लिखा है - 'डोंगरे का बलामृत'



•मलाल उन्हें भी रहा, जो इश्क से मिल न पाये,
करते रहे इबादत अन जाने किस की...लोग कहते हैं आज कि वो मन्दिर में खुदा-खुदा करता रहता था


•एक बिहारी, सौ बीमारी; दो बिहारी, लड़ाई की तैय्यरी;
तीन बिहारी, ट्रेन हमारी; चार बिहारी, सरकार हमारी; पाँच
बिहारी, पंजाब ही हमारी;
चक दे फटटे भाय्या भागाओ, पंजाब बचाओ."
—a popular SMS joke in Punjab



•हतोबा प्रापयासी स्वर्गम, जितवबा भोक्श्यसे माहिं
तस्मादुटतिष्ठा कौन्तेय, युद्धया कृतनीश्चयः – गीता

मुश्किल है अपना मेल प्रिये

मेरे कॉलेज के एक बहुत ही हरफ़नमौला किस्म के सीनियर द्वारा रचित कविता

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम एम ए फ़र्स्ट डिवीजन हो, मैं हूँ मेट्रिक फेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम फ़ौजी अफ़सर की बेटी, मैं तो किसान का बेटा हूँ,
तुम रबड़ी खीर मलाई हो, मैं तो सत्तू सॅप्रेटा हूँ,
तुम एसी घर में रहती हो, मैं पेड़ के नीचे लेता हूँ,
तुम नई मारुति लगती हो, मैं स्कूटर लम्बरेता हूँ,
इस कदर अगर हम छुप-छुप कर आपस मे प्रेम बढ़ाएँगे,
तो एक रोज़ तेरे डॅडी अमरीश पुरी बन जाएँगे,
सब हड्डी पसली तोड़ मुझे भिजवा देंगे वो जेल प्रिए,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये