शुक्रवार, अप्रैल 06, 2012

Amzing Grace

by one of hte person who played an important role in abolisihing slave trade in 18th century
a former slave ship captain who became a repentent priest later
Amazing GraceAmazing grace! (how sweet the sound!)
That sav'd a wretch like me!
I once was lost, but now am found;
Was blind, but now I see.

'Twas grace that taught my heart to fear,
And grace my fears reliev'd;
How precious did that grace appear,
The hour I first believ'd!

Thro' many dangers, toils, and snares,
I have already come;
'Tis grace has brought me safe thus far,
And grace will lead me home.

The Lord has promis'd good to me,
His word my hope secures;
He will my shield and portion be,
As long as life endures.

Yes, when this flesh and heart shall fail,
And mortal life shall cease;
I shall possess, within the veil,
A life of joy and peace.

This earth shall soon dissolve like snow,
The sun forbear to shine;
But God, who call'd me here below,
Will be for ever mine.

John Newton

बुधवार, अप्रैल 04, 2012

some couplets

from orkut community
not mine

हर बात में सुकून हो यह हो नहीं सकता !
कोई बात कभी कलेजे के पार हो जाती !!

जुगनुओं ने अभी हिम्मत नहीं हारी है !
उनकी जंग अँधेरे के खिलाफ जारी है !!

सूखे पत्तों की तरह बिखरे थे हम...
किसी ने समेटा भी तो बस जलाने के लिए....

तुम मिले हो तो अब यही गम है......
प्यार ज्यादा है, ज़िन्दगी कम है....


तुम मिले हो तो अब यही गम है......
प्यार ज्यादा है, ज़िन्दगी कम है....

खुदा' होना था, तो हो जाते, किसने रोका था ?
कम से कम, दोस्ती का हुनर तो ज़िंदा रखते

तेरी खामोशी मुझे तेरी ओर खींचती है
मरी हर आह तेरी तकलीफ समझती है
मालूम है कि मजबूर है तू
फिर भी मेरी नज़र तेरे दीदार को तरसती है

कुछ तो मज़बूरियाँ रही होंगी, यूँ ही कोई बेवफा नहीं होता
दिल ने तो कहना बहुत चाहा मगर, क्या करें हौसला नहीं होता...


आज उनका शायराना अंदाज देख के दिल तड़प उठा...
जो हमेशा हमको कहते थे क्या बेतुकी बाते करते हो..

इश्क-ए-बुतां करूँ , कि यादे खुदा करूँ
इस छोटी सी उम्र में मैं क्या-क्या खुदा करूँ


जिंदगी आधी बीत गयी चंद रिश्तों को निभाने मैं,
कुछ रूठने में कुछ मानाने मैं,
वक्त बदला रिश्ते बदले रिस्तो के अब तो मायने बदल गए,
अब बीतता है सारा वक्त,
उन अपनों को भुलाने मैं...♪

किसी से बात कोई आजकल नहीं होती
इसीलिए तो मुकम्म्ल ग़ज़ल नहीं होती

ग़ज़ल सी लगती है लेकिन ग़ज़ल नहीं होती
सभी की ज़िंदगी खिलता कँवल नहीं होती

तमाम उम्र तजुर्बात ये सिखाते हैं
कोई भी राह शुरु में सहल नहीं होती

मुझे भी उससे कोई बात अब नहीं करनी
अब उसकी ओर से जब तक पहल नहीं होती

वो जब भी हँसती है कितनी उदास लगती है
वो इक पहेली है जो मुझसे हल नहीं होती

आज फिर यह आँखें नम क्यूँ हैं,

जिसे पाया ही नहीं उसे खोने का गम क्यूँ है,

तुझसे मिलके बिछड़े तोह एहसास हुआ,

कि ज़िन्दगी इतनी कम क्यूँ है... :-(

देख ले ज़ालिम शिकारी ! माँ की ममता देख ले
देख ले चिड़िया तेरे दाने तलक तो आ गई

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है

जब कभी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है

शरारत न होती तो शिकायत न होती नैनो में किसी के नजाकत न होती

न होती बेकरारी न होते हम तन्हां अगर जहाँ में ये मोहब्बत न होती

हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी,
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी,

सुबह से शाम तक बोझ ढ़ोता हुआ,
अपनी लाश का खुद मज़ार आदमी,

हर तरफ भागते दौड़ते रास्ते,
हर तरफ आदमी का शिकार आदमी,

रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ,
हर नए दिन नया इंतज़ार आदमी,

जिन्दगी का मुक्कदर सफ़र दर सफ़र,
आखिरी साँस तक बेकरार आदमी

रविवार, अप्रैल 01, 2012

फ़ासले

यह फ़ासले तेरी गलियों के हमसे तय ना हुए, हज़ार बार रुके हम हज़ार बार चले , ना जाने कौन सी मिट्टी वतन की मिट्टी थी, नज़र में धूल, जिगर में लिए गुबार चले - गुलज़ार

Ramnavami

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी। हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी। भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी।।

अर्थात् दीनों पर दया करने वाले, कौसल्याजी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए। मुनियों के मन को हरने वाले उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गई। नेत्रों को आनंद देने वाला मेघ के समान श्याम शरीर था, चारों भुजाओं में अपने (खास) आयुध (धारण किए हुए) थे, (दिव्य) आभूषण और वनमाला पहने थे, बड़े-बड़े नेत्र थे। इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा खर राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट हुए।

नौमी तिथि मधुमास पुनीता। । सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता।
मध्य दिवस अति शीत न घामा। पावन काल लोक विश्रामा।।

अर्थात् पवित्र चैत्र का महीना था, नवमी तिथि थी। शुक्ल पक्ष और भगवान का प्रिय अभिजित्‌ मुहूर्त था। दोपहर का समय था। न बहुत सर्दी थी, न धूप थी। वह पवित्र समय सब लोकों को शांति देने वाला था।

जो आनंद सिन्धु सुखरासी, सीकर तें त्रलोक सुधासी
सो सुखधाम राम अस नामा, अखिल लोक दायक विश्रामा।

अर्थात् जो आनंद के समुद्र और सुख के भंडार है, जिनके एक बूँद से तीनों लोक सुखी हो जाते हैं, उनका नाम राम है। वे सुख के धाम है और संपूर्ण लोकों को शांति देने वाले है। तुलसी दास कहते है 'राम' शब्द सुख-शांति के धाम का सूचक है। राम की प्राप्ति से ही सच्चे सुख और शांति की प्राप्ति होती है।


अमीर ख़ुसरो ने कहा है ...
शोखी-ए-हिन्दू ब बीं,कुदिन बबुर्द अज़ खास ओ नाम।
राम-ए-नाम हरगिज़ न शुद हर चंद गुफ्तम राम राम।।

अर्थात् हर आम और खास ये जान ले कि राम हिंद के शोख और शानदार शख्शियत हैं। राम मेरे मन में हैं। मै राम राम बोलूँगा जब भी बोलूँगा।