मंगलवार, अगस्त 31, 2010

हुस्न ए हक़ीक़ी – beauty of truth

ऐ हुस्ने हक़ीक़ी नूर ए अzअल

तेनू वाजिब ते इमकान कहूँ

तेनू खालिक ज़ात क़दीम कहूँ

तेनू हदीस खल्क़ जहाँ कहूँ

तेनू मुतलक़ महज़ वजूद कहूँ

तेनू ऑल्मिया अयान कहूँ

आवाह नफूस अक़ूल कहूँ

अश्बा इयान नेहान कहूँ

तेनू आइन हक़ीक़त माहीयत

तेनू अर्ज़ सिफ़त ते शान कहूँ

अनवाह कहूँ औज़ाह कहूँ

अतवार कहूँ औज़ान कहूँ

तेनू अर्श कहूँ अफलाक कहूँ

तेनू नाज़ नईम जानां कहूँ

तेनू तट जमाड नबाट कहूँ

हैवान कहूँ इंसान कहूँ

तेनू मस्जिद मंदिर दार कहूँ

तेनू पोथि ते क़ुरान कहूँ

तसबीह कहूँ ज़ुननार कहूँ

तेनू कुफ्र कहूँ ईमान कहूँ

तेनू बादल बरखा गाज कहूँ

तेनू बिजली ते बरान कहूँ

तेनू आब कहूँ कहूँ तेनू खाक कहूँ

तेनू बाद कहूँ नीरान कहूँ

तेनू दसरत लीचमान राम कहूँ

तेनू सीता जी ज़ानां कहूँ

बलदेव जसुदा नंद कहूँ

तेनू किशन कन्हैया कान कहूँ

तेनू बार्ह्मा बिशन गणेश कहूँ

महादेव कहूँ भगवान कहूँ

टेनी गीत ग्रंथ ते बेद कहूँ

तेनू ग्यान कहूँ अग्यान कहूँ

तेनू इब्राहिम हवा शीस कहूँ

तेनू नूह कहूँ तूफान कहूँ

तेनू इब्राहिम ख़लील कहूँ

तेनू मूसा बिन इमरान कहूँ

तेनू हर दिल दा दिलदार कहूँ

तेनू अहमद आलीशान कहूँ

तेनू शाहिद मल्क हिजाज़ कहूँ

तेनू बाइस कौन मकान कहूँ

तेनू नाज़ कहूँ अंदाज़ कहूँ

तेनू हूर पारी गील्मान कहूँ

तेनू नौक कहूँ तेनू त्तौक कहूँ

तेनू सुर्खी बीधा पान कहूँ

तेनू तबला ते तम्बूर कहूँ

तेनू ढोलक सुर्र ते तान कहूँ

तेनू हुस्न ते हार सिन्घार कहूँ

तेनू अश्वा घमzअ आन कहूँ

तेनू इश्क़ कहूँ तेनू इल्म कहूँ

तेनू वेहेम यक़ीन गुमान कहूँ

तेनू हुस्न कवि इद्राक कहूँ

तेनू ज़ौक कहूँ वज्दान कहूँ

तेनू साकार कहूँ सकरान कहूँ

तेनू हैरत ते हैरान कहूँ

तसलीम कहूँ तल्वीन कहूँ

टमकीन कहूँ इरफ़ान कहूँ

तेनू सुंबल सोसन सर्व कहूँ

तेनू नरगिस नाफ़रमान कहूँ

तेनू लाले दाघ ते बाघ कहूँ

गुलज़ार कहूँ बुस्तान कहूँ

तेनू खंजर तीर तूफांग कहूँ

तेनू बरछा बांक सनान कहूँ

तेनू तीर खिदंग कमान कहूँ

सूफार कहूँ पीकान कहूँ

बेरंग कहूँ बेमिसाल कहूँ

बेसूरत हर हर आन कहूँ

सुबह कहूँ क़ुदूस कहूँ

रहमान कहूँ सुभान कहूँ

कर तौबा टार्ट फरीद सदा

हर शह नू पर नुकसान कहूँ

तेनू पाक अलख बे ऐब कहूँ

तेनू हक़ बे नाम निशान कहूँ


हुस्न ए हक़ीक़ी – ब्यूटी ऑफ ट्रूथ

ख्वाजा गुलाम फरीद (1841 – 1901)

गुरुवार, अगस्त 19, 2010

In love with Zeb and Haniya

Artists like these and songs like this make you wish for a united india and are also a fitting reply to Taliban types (both are pashtun girls)


तेरी बातों ने दिल तोड़ा
तूने देखा और मुँह मोड़ा
बादल गरजा तोड़ा तोड़ा
तेरी बातों ने दिल तोड़ा
तूने देखा और मुँह मोड़ा
बादल गरजा थोड़ा थोड़ा
पानी बरसा
ये दिल तरसा
पर जब बीता तोड़ा अरसा
मैने रोना छोड़ दिया
गुज़रे थे जिन्से रास्ते
वोही अंजान आहें बन गईं
करनी थी जिससे बात उंकही
शायद चुप ही है सही
हलचल मैं है सागर सभी
साकीं है कुछ जुंबिश नही
यूँही है गुज़रे है ज़िंदगी
जीते कोई कोई
अब तो मैं बस एक भंवर हूँ
गर्दिश मैं हूँ रहगुज़ार हूँ
तूफान हूँ मैं तेरा दर हूँ
चल पड़ी है कल की खोई
हिम्मत है तो रोके कोई
मैने रोना छोड़ दिया
गिरते पत्तों ने
आस है भारी
कल ना आएगी कभी
बांधो ढारस अब
वक़्त है यही
कर गुज़रो सब कुछ अभी
गर्दिश मैं है मौसम सभी
ठहरी नही रोके नही
रस्म-ए-दुनिया है तो यही
पहुँचें कोई कोई
तेरी बातों ने दिल तोड़ा
तूने देखा और मुँह मोड़ा
बादल गरजा थोड़ा थोड़ा
पानी बरसा
ये दिल तरसा
पर जब बीता तोड़ा अरसा
मैने रोना छोड़ दिया
मैने रोना छोड़ दिया
मैने रोना रोना रोना रोना रोना छोड़ दिया

बुधवार, अगस्त 18, 2010

some collected quotes

जिस खाक के ज़मीर मैं हो आतिश ए चिनार/ मुमकिन नहीं के सर्द हो वो खाक ए अरजुमंद.”

•''उनको देखे से जो आ जाती है चेहरे पे रौनक, वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।''


बोल, की लब आज़ाद हैं तेरे/बोल, ज़बान अब तक तेरी है... /बोल, की सच ज़िंदा है अब तक/बोल, जो कुछ कहना है कहले.
(Speak, your lips are free. Speak, it is your own tongue... Speak, because the truth is not dead yet. Speak, speak, whatever you must speak.)



Akbar Allahabadi-
o“पामाल हैं मगर हैं साबित क़दम वफ़ा में
ओ हम मिसले-ए-संग-ए-दर के इस आस्तान पर हैं’’
[Though crushed, we are firm in our loyalty
We are like a rock at the threshold of our country]


रहिए अब ऐसी जगह चलकर जहाँ कोई न हो
नोहाख्वा कोई न हो, और हमनवाँ कोई न हो।


•मैं रोया परदेस में, भीगा माँ का प्यार
दु:ख ने दु:ख से बात की, बिन चिठ्ठी बिन तार।


हमने माना है दकन में इन दिनों क़द्रे सुख़न...कौन जाए ज़ौक़ पर दिल्ली की गलियाँ छोड़कर.


•जो था न है, जो है न होगा, यही है एक हर्फे मुजिरमाना, करीबतर है नुमूद जिसकी उसी का है मुश्ताक ज़माना

•अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप। अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।


क़ौम के गम में डिनर खाते है हुकुम के साथ
रॅंज लीडर को बहुत है पर अपने ऐशों आराम के साथ
(Muslim leaders talk about the plight of Muslims during dinner with the British
They are not concerned about the sad state of Muslims, but with their own comforts.)

"कहाँ से लाएगा कासिद बयाँ मेरा ज़ुबाँ मेरी?
मज़ा था तब जो सुनते मेरे मुँह से दास्ताँ मेरी!"


निसार मैं तेरी गलियों के ऐ वतन कि जहाँ
चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले
जो कोई चाहने वाला तवाफ़ को निकले
नज़र चुरा के चले जिस्मों-जाँ बचा के चले


•चंदन कर्दम कलहे भेको मध्यस्थतापन्नः।
ब्रूते पंक निमग्नः कर्दम साम्यं च चंदन लभते।।
अर्थात चंदन और कीचड़ में विवाद हुआ और मेंढक को मध्यस्थ बनाया गया। चूँकि मेंढक कीचड़ में ही रहता है, वह चंदन का साथ भला कैसे दे सकता है?


•'हम सूरज के भरोसे मारे गए
और
सूरज
घड़ी के.
..........
और
सुबह है
कि हो ही नहीं पा रही है.' –वेणुगोपाल



‘हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदार पैदा.


ख़ुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वा की धार,
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार.


ये दाग दाग उजाला,
ये शब-गुज़ीदा सहर.
ये वो सहर तो नही के जिसके लिए,
चले थे यार के मिल जाएगी कहीं ना कहीं



पान सो पदारथ, सब जहान को सुधारत
गायन को बढ़ावत जामे चूना चौकसाई है
सुपारिन के साथ साथ,मसाला मिले भांत भांत
जामे कथे की रत्तीभर थोड़ी सी ललाई है
बैठें है सभा मांहि बात करे भांत भांत
थूकन जात बार बार जाने का बड़ाई है
कहें कवि 'किशोरदास' चतुरन की चतुराई साथ
पान में तमाखू किसी मूरख ने चलाई है
- पंडित किशोरदास 'khandwaavaasi'

पता : बमबई बाजार रोड, गांजा गोदाम के सामने , लाइब्ररी के
निकट वाला बिजली का खम्बा, जिसपे लिखा है - 'डोंगरे का बलामृत'



•मलाल उन्हें भी रहा, जो इश्क से मिल न पाये,
करते रहे इबादत अन जाने किस की...लोग कहते हैं आज कि वो मन्दिर में खुदा-खुदा करता रहता था


•एक बिहारी, सौ बीमारी; दो बिहारी, लड़ाई की तैय्यरी;
तीन बिहारी, ट्रेन हमारी; चार बिहारी, सरकार हमारी; पाँच
बिहारी, पंजाब ही हमारी;
चक दे फटटे भाय्या भागाओ, पंजाब बचाओ."
—a popular SMS joke in Punjab



•हतोबा प्रापयासी स्वर्गम, जितवबा भोक्श्यसे माहिं
तस्मादुटतिष्ठा कौन्तेय, युद्धया कृतनीश्चयः – गीता

मुश्किल है अपना मेल प्रिये

मेरे कॉलेज के एक बहुत ही हरफ़नमौला किस्म के सीनियर द्वारा रचित कविता

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम एम ए फ़र्स्ट डिवीजन हो, मैं हूँ मेट्रिक फेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम फ़ौजी अफ़सर की बेटी, मैं तो किसान का बेटा हूँ,
तुम रबड़ी खीर मलाई हो, मैं तो सत्तू सॅप्रेटा हूँ,
तुम एसी घर में रहती हो, मैं पेड़ के नीचे लेता हूँ,
तुम नई मारुति लगती हो, मैं स्कूटर लम्बरेता हूँ,
इस कदर अगर हम छुप-छुप कर आपस मे प्रेम बढ़ाएँगे,
तो एक रोज़ तेरे डॅडी अमरीश पुरी बन जाएँगे,
सब हड्डी पसली तोड़ मुझे भिजवा देंगे वो जेल प्रिए,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये