गुरुवार, सितंबर 02, 2010

Ek aur cheelu

तू चल पड़े जो सिंह सा तो क्या धरा है क्या गगन !
डोल मदमस्त सा तू कर चिंघाड़ हो मगन |

कायरों की भीड़ में पुकारता तू हंस के चल ..
ठूंठ के इस युग्म में बढा क़दम फिर मचल |

मृत्यु एक सोम है बस प्रश्न है कि कब पिए ?
ये नहीं कितना जिये ..ये है कि कैसे जिये ?

खुद को मारना बदल के उठ प्रचंड तू निकल ..
मर रहा है क्या असंख्य मौत पूछता है पल ?

हर कोई है जी रहा तो जीने में क्या बात है ?
कर सफल जो जन्म को तो वो सत्य प्रसाद है |

आज गर तू छुप गया तो कायर ही कहलायेगा ..
नरमुंड हैं पड़े तू भी एक बन जाएगा |

शस्त्र उठा युद्ध कर , परिणाम से तू अब न डर ...
विजयी हो बन अजर या शहीद हो तू बन अमर |

1 टिप्पणी:

Hitesh Rawat ने कहा…

this is wonderful. really motivational. I'm among those people who believe motivating and inducing a thought into a crowd is the most difficult and an achievement if one can do it. This poem does that very efficiently.

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